हिन्दी हित में पञ्चमाक्षर(पंचमाक्षर) Panchmakshar का प्रयोग

हिन्दी हित में पञ्चमाक्षर(पंचमाक्षर) का प्रयोग

हिन्दी भाषा मे पञ्चमाक्षर के स्थान पर हर जगह अनुस्वार(बिन्दी) का प्रयोग मजबूरी में किया गया था और नाम दिया गया था सरलीकरण का। इसका कारण यह था कि मैनुअल टाइपराइटर पर ङ और ञ की कुँजी थी ही नही (विदित हो कि हिन्दी कीबोर्ड के लिए टाइपराइटर के रुप में रेमिंगटन कीबोर्ड ही पूरे देश में प्रचलित था और आज यह बन्द हो जाने के बाद भी लोग रेमिंगटन पर पहले से ही अभ्यस्त होने के कारण आज भी उसी लेआउट पर टाइप करना पसन्द करते हैं, जिस पर ङ और ञ कुञ्जी नहीं है) और उस वक्त अक्षर के नीचे अक्षर टाइप किया जाना सम्भव ही नहीं था जैसे गङ्गा आदि। अतः पञ्चमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग करके काम चलाना पड़ता था। हिन्दी कुञ्जीपटल में सीमित जगह के कारण, हिन्दी मानकीकरण की प्रक्रिया में पञ्चमाक्षर को अनुस्वार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और सब जगह बिन्दी लगाने का विधान कर दिया गया। 
               हिन्दी का मैनुअल कीबोर्ड जिस में ङ और ञ की कुञ्जी नहीं है।

 अब जब हिन्दी संस्कृत से उत्पन्न हुई है तो उसके नियम स्वीकारेगी ही। संस्कृत की संन्धि है परसवर्ण सन्धि जो हिन्दी में अङ्गीकृत है। संस्कृत भाषा का एकमात्र प्रचलित व्याकरण है पाणिनि व्याकरण। पाणिनि ऋषि के अष्टाध्यायी ग्रन्थ में एक सूत्र आता है: अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः॥ इस सूत्र का फलितार्थ यह है कि किसी पद अर्थात् शब्द के बीच में यदि अनुस्वार आता हो और उसके बाद यदि कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग या पवर्ग का कोई वर्ण हो, तो वह अनुस्वार अपने पर वर्ण के सवर्णीय अनुनासिक वर्ण में परिवर्तित हो जाता है। इस नियम में कोई विकल्प नहीं है और यह अनिवार्य रूप से लागू होने वाला नियम है।
 ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक विद्वानों ने यह मान लिया था कि भविष्य में कोई ऐसी तकनीक नहीं आ पायेगी जिससे पञ्चमाक्षर टाइप किया जा सकेगा या यह सोच रही होगी कि हिन्दी को संस्कृत से इतना दूर कर दो कि दोनो भाषा मे समानता ही न रह जाए और हिन्दी एकदम अलग भाषा नजर आये, कारण जो भी हो पर सर्वथा अनुचित है, अन्यथा हिन्दी में बिन्दी को मानकीकरण के नाम पर हर जगह प्रयोग करने के लिए बाध्य न करते और हिन्दी की मौलिकता और खूबसूरती को खत्म न करते। संस्कृत या हिन्दी, पञ्चमाक्षर सहित टाइप करने सम्बन्धी लेख व उमेश-इन्स्क्रिप्ट देवनागरी कीबोर्ड के लिए क्लिक करें यहाँ
 पञ्चमाक्षर पद्धति वाला हिन्दी शुद्ध रुप है। अनुस्वार पद्धति वाला हिंदी तो प्रमाद वाला रूप है (इसी तरह अन्य में भी)। इसलिए लिखते समय पञ्चमाक्षर को व्यवहार में लाइए अर्थात पञ्चम वर्ग में बिन्दी की जगह पञ्चम वर्ण यानि ङ, ञ, ण, न, म का प्रयोग कर हिन्दी भाषा को मौलिकता प्रदान करना ही हिन्दी के लिए हितकर होगा।
 प्रमाद का अर्थ 
प्रमाद = संज्ञा पुं॰ (सं॰) 1- किसी कारण से कुछ को कुछ जानना और कुछ को कुछ करना। वह अनवधानता जो किसी कारण से हो। भूल। चूक। भ्रमभ्रान्ति। 2- अंत:करण की दुर्बलता। 3- योगशास्त्रानुसार समाधि के साधनों की भावना न करना या उन्हे ठीक न समझना। यह नौ प्रकार के अन्तरायों मे चौथा है। इससे साधक को चित्तविक्षेप होता है। 4- लापरवाही। भयंकर भूल। 5- मद। नशा। उन्माद। 6- विपत्ति। संकट।
महर्षि पाणिनि ने हमें पञ्चमाक्षर सिद्धान्त दिए परन्तु पाणिनि से भी अधिक विद्वानों(!) ने सुविधा के नाम पर मानकीकरण में सभी पञ्चमाक्षरों को 'सब धान बाईस पसेरी' के अनुसार कर दिया दूसरे शब्दों में कहें तो अन्धेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा कर दिया जो कि ऊपर दृष्टिगोचर हो रहा है। इस प्रकार पञ्चमाक्षरों के बदले अनुस्वार का उपयोग करने का विधान कर के भारतीय लिपियों को अपंग बना दिया गया।  शुद्ध उच्चारण एवं वर्तनी के लिए पञ्चमाक्षर का ही उपयोग किया जाना चाहिए। पञ्चमाक्षर टाइप करने हेतु फॉण्ट- Sarai, Shobhika, gargi, Siddhanta, amita, Sanskrit 2003, Chandas, Kalimati, AA_NAGARI_SHREE_L3 आदि। (Sarai फॉण्ट सर्वोत्तम है) Siddhanta फॉण्ट में संस्कृत व हिन्दी के मूल अङ्क भी हैं, विदित हो कि मानकीकरण के नाम पर पाँच, आठ व नौ के अङ्क मराठी अङ्कों से बदल दिए गए हैं।
मानकीकरण का उदाहरण देखिएः-
मानकीकरण की धारा 3.6.1.2
उपरोक्त चित्र मे मानकीकरण की धारा 3.6.1.2 में मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार के ही प्रयोग करने के लिए कहा गया है जो स्पष्ट रुप से एकरुपता के नाम पर मजबूरी को प्रमाणित करता है।

टाइप करने मे पहले कठिनाई रही लेकिन अब नहीं है। इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड और वर्तमान समय मे बहुत सारे फॉण्ट उपलब्ध हैं जैसे सराय(sarai), संस्कृत2003 आदि जिनसे पञ्चमाक्षरों को बहुत ही आसानी से टाइप किया जा सकता है फिर हर जगह बिन्दी को लगा कर भ्रान्तियों को बनाए रखना क्या उचित है। उदाहरण के लिए हिंदी, गंगा, संपत को हम पंचमाक्षर(पञ्चमाक्षर) में हिन्दी, गङ्गा, सम्पत लिखेगें जहाँ पर भ्रम की सम्भावना समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार संबंध में स और ब दोनो के ऊपर बिन्दी है जो स्पष्ट रुप से भ्रम पैदा कर रही है, माथापच्ची करने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाता है कि पहली बिन्दी का क्या मतलब है और दूसरे का क्या। इस प्रकार बिन्दी के हर जगह प्रयोग पर प्राय: भ्रम की स्थिति बनी रहती है परन्तु इस प्रकार के भ्रम की कोई भी गुंजाइश पञ्चमाक्षर के प्रयोग में नहीं है। 
  चूँकि अब टाइप करने मे कोई कठिनाई नहीं है इसलिए पंचमवर्ग में अनुस्वार के रुप में पञ्चमाक्षर की जगह बिन्दी का प्रयोग बन्द किया जाना आवश्यक है और पञ्चमाक्षरों का प्रयोग पञ्चमवर्ग में अनिवार्य रुप से किया जाना चाहिए।

इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड
  • इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट जिस पर ङ और ञ कुञ्जी है, से बहुत ही आसानी से पञ्चमाक्षर सहित हिन्दी, संस्कृत आदि भाषाएं मौलिक रुप में टाइप की जा सकती हैं और जो भारत सरकार द्वारा भी अधिकृत(मान्य) है।

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7 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक अनुछेद। मुझे अनुस्वार के बारे मे पता था पर यह क्यों किया गया यह नही पता था। अब मुझे हिन्दी की शब्दावली के बारे मे कुछ अनुभव हुआ यह लेख पढ़ कर। आपका धन्यवाद।

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    1. यह जानकर अच्छा लगा कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद

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  2. कुछ भाषाविज्ञान के विद्वानों के द्वारा देवनागरी लिपि के क्रमविकास पर शोध के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि अनुस्वार की व्युत्पति 'ङ' से हुई है। 'ङ' की सिर्फ बिन्दी को रखकर। चन्द्रबिन्दु की व्युत्पति 'ञ' से हुई है। ञ्‍ को रखकर अर्थात् "आधे ञ" को रखकर। अतः ण् न् म् के बदले भी अनुस्वार का प्रयोग करना भाषा को अपंग बनाना ही है। देवनागरी मूलतः संस्कृत की लिपि है। पञ्चमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग से संस्कृत/वेदों के मंत्रों का उच्चारण गलत होता है। कोई मंत्र सिद्धि नहीं मिल पाती। कभी कभी तो देवता रुष्ट होकर अनर्थ कर देते हैं। अब युनिकोड के ओपेन टाइप फोंट में जब सारे वर्ण टाइप करने संभव हैं तो "देवनागरी लिपि एवं हिंदी वर्तनी का मानकीकरण" पुस्तिका की मद सं.3.6.1.2 में सुधार किया जाना नितान्त आवश्यक है। इस मद को उलटाया जाना जरूरी है। भले ही कुछ समय तक पञ्चमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग की छूट दी जा सकती है। सभी हिंदी स्पेलचेकर उपकरणों में यह व्यवस्था की जाए कि जहाँ अनुस्वार का गलत प्रयोग हो उसे पञ्चमाक्षर+हलन्त में बदल दे। ISO-15919 मानक में भी तदनुसार संशोधन किया जाना आवश्यक है।

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  3. हरिराम जी, मेरे विचार में मूल पञ्चमाक्षर सिद्धान्त को अनिवार्य रुप से मानकीकरण मे रखकर मानकीकरण मे अविलम्ब सुधार किया जाना चाहिए। संस्कृतनिष्ठ हिन्दी ही सर्वोत्तम है।

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  4. पांडेय जी आप का बहुत बहुत धन्यबाद
    जानकारी देने और प्रेरित करने के लिये

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  5. बेनामी10/13/2022

    बहुत अच्छी जानकारी दी आपने

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